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लेकर आँचल में सुखद प्यार

 


 
लेकर आँचल में सुखद प्यार
गंगा की निर्मल सरस धार,
अविरल बहती, कहती जाती
मत भूलो अपने संस्कार ...!!

कितने ही प्यासे मरुथल
तट पर आकर तर जाते हैं।
जिसके सुभग चरण छूकर
कितने ही दुख कट जाते हैं।
जिसका दर्शन तीरथ सा है,
क्षण-क्षण है, शिव का सिंगार ....!!

जिसके आँचल में छुपकर
जीवन को मीठी नींद मिले।
भागीरथ श्रमसाधों से
प्राणों के उज्जवल दीप जले।
बूँद-बूँद अमृत-घट देती,
भवसागर से पार उतार .....!!

सुरसरि में, यदि श्रद्धा तुमको
मानवता का, कुछ मान करो,
पाप विसर्जन क्यों करते,
पावनता का, नित ध्यान करो !
दूषित भाव, तजो मन के
रे मानव सुन माँ की पुकार ...!!

-भावना तिवारी
१७ जून २०१३

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