|
देवनदी तुमको प्रणाम है |
|
सरिता-श्रेष्ठा, देवनदी,
तुमको प्रणाम है
सदियों से उपकार तुम्हारा, पाता आया धरा धाम है
पिता हिमालय की गोदी से, उछली नीचे आई
मरुस्थली का सिंचन कर दुनिया नई बनाई
बहुत वेग से सागर से मिल, जीवन-सार बताया
पूर्ण समर्पण ही जीवन का, सच्चा तत्व जताया
क्षत-विक्षत कर आज तुम्हें, हम कृतघ्नता दिखलाते
अमृत-दात्री बनी प्रदूषित, फिर भी नहीं लजाते
सुरसरि सबका हित करती तुलसी ने हमें बताया
पर विकास की ओट लिए, मानव ने तुम्हें सताया
मुक्त करो गंगा माता को, यह युग का सन्देश
केवल गंगा हर सकती है, मानवता का क्लेश
मुझे
बुलातीं हैं स्मृतियाँ
स्नेहिल संसार तुम्हारा
-डॉ. बच्चन पाठक सलिल
१७ जून २०१३ |
|
|
|
|