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गंगा नदी नहीं केवल

 

 
गंगा नदी नहीं केवल

समझो इसका अर्थ असल
इसमें बहते मंत्र हमारे
उम्मीदों से सजे किनारे
करते हैं छल-छल

जिसकी लहर-लहर पावन है
बूँद-बूँद जिसका सावन है
मुंडन से मरघट की यात्रा
इस जल की थोड़ी-सी मात्रा
जीवन करे सफल

पन्नी, कपड़ा, कागज़ बहता
ये कैसी पूजा है करता
कहाँ गई इसकी निर्मलता?
कहाँ गई इसकी पावनता?
रही नहीं उज्ज्वल!

इन लहरों में वेद-ऋचाएँ
मंत्रों का संवाद छिपा
तेरी-मेरी आशाओं का
हम सबका विश्वास छिपा
समझें शायद कल...

-अलका सिन्हा
१७ जून २०१३

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