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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

कोमल गीत

शरद लहर ने बिखराए यों अपने कोमल गीत
गीतो की सुंदर कड़ियों से बाँध दिये सब मीत

खिली धूप की तेज रश्मियों का आवाहन
मुखर हो रहे भूली बिसरी यादों के घन

गूँज रहा करतल ध्वनि में रुक-रुक कर संगीत
कम्पित स्वर से रस रंजित हो फूट रहे नव गीत

चला कुहासा दूर क्षितिज के मन में भर सन्ताप
ओस कणों में मोती जैसा भरती धूप प्रताप

सिहर सिहर कर बढ़ता सूरज सारे मोती चुनता
ऊँची नीची राहो में इक खिला हुआ दिन बुनता

रूप बदलती कलियाँ खिलती फैला मृदुल सुगंध
शरद सूर्य की उष्मा भरती मन में नयी उमंग।

-बृजेश कुमार शुक्ला

  सुबह गुवाहाटी में

काँव कौवों की।
उतरती सूर्य किरणें।
उधर अब भी- उस तरफ
कुछ दूर, कोहरा तना!
पीठ पीछे सो रहे, या
अभी जागे, घर!
वृक्ष अपनी जगह पर,
कुछ सिहरती-सी हवा।
जल लहरियाँ डोंगियाँ नावें :
आँख की ही भाँति
उभरतीं, उत्सुक!
इधर को या उधर को
कुछ झुक!
वहाँ, उस विस्तार में, वह
एक मोटर बोट -
दृश्य की ही ओट,
खड़े पर्वत शिखर,
जैसे प्रार्थना में लीन!
रूई से छितरे हुए बादल।
सूर्य का आलोक छूता जल
दृश्य का, पर सदा रहता
बना एक
अतल!

पलटने के लिए, फिर
विस्तार में,
है वही तो संबल!!
वही एक अतल!!

-प्रयाग शुक्ल

 

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