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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

पहली सुबह

रात के अंतिम प्रहर में
सुबह की अगवानी में
लॉन की हरी घास पर
छींट दिये हैं कुछ फूल हरसिंगार के

रात भर सीटियाँ बजाते रहने के बाद
पहरेदार नेपाली
काँख में कंबल दबाए
घर की तरफ
वापस चला गया है अभी अभी

मानिकचंद हलवाई की दूकान का
गंदी निक्कर वाला वह छोकरा
जम्हाइयाँ लेता हुआ
धधकाने लगा है भठ्ठी में कोयला

स्कूल के रिक्शों
और दूध की बाल्टियों की
खड़र भड़र
सिर पर टोकरियाँ ओढ़े
खुसुर पुसुर बतियाती
रेलवे स्टेशन की तरफ जाती
कोयला बीनने वाली
खटिक बस्ती की दो तीन बच्चियाँ

एक सुग्गा
चुपचाप टहनी पर बैठा
कुतरने लगा है अमरूद

मैं खिड़की के पास बैठा
अखबार की प्रतीक्षा में
सोचता हूँ
क्या ऐसे ही शुरू हुई थी
पृथ्वी की पहली सुबह।

- सूर्यनाथ सिंह

 

कैसी सर्दी

गर्म महल है,
गर्म है माथा,
घोटालों की,
गर्म है गाथा,
रिश्तों में भी कड़वाहट की,
कुछ गर्मी-सी छाई है,
कैसी सर्दी आई है।

धर्म टूटकर,
धर्म बना है,
लाल रक्त से,
धर्म सना है,
धर्मगुरू नें ढोंग रचाकर,
बेशर्मी बिखराई है,
कैसी सर्दी आई है।

सत्य से लड़कर,
सत्य मिटा है,
आज खेल में,
सत्य पिटा है,
नव असत्य की आँगन आँगन,
अब बहती पुरवाई है,
कैसी सर्दी आई है।

सर्द झोंपड़ा,
सर्द साँस है,
जीवन क्या है,
सर्द आस है,
सर्द भावनाओं की सूची,
ठिठुर ठिठुर कुम्हलाई है,
कैसी सर्दी आई है,
यह कैसी सर्दी आई है।

- अभिनव शुक्ला

 

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