ठिठुर ठिठुर
कर दुबक के बैठे
कुछ कोने में
हंस हंस खाते दूध जलेबी
कुछ दोने में
टोपी पहने
कम्बल डपटे
अंधेरे में
आँच तापते बातें करते
इक घेरे में
काँप रहे
और हाथ मल रहे
चौपड़ पर कुछ
कड़क चाय की चुस्की लेते
नुक्कड़ पर कुछ
भाग भाग
अख़बार बाँटते
कुछ घर घर पर
चिलम लगा कर डींग हाँकते
चबूतरे पर
मंदर में
हैं लगे हुये कुछ
मंतर जपने
तेरे सपने
मेरे सपने
सर्दी से
सिमटे सकुचाये
अपने सपने!
- राज जैन
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