अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

इमारात की सर्दी

ग्रीष्म ऋतु की रही न चुभन
उमस रही न अब रही तपन
हल्की-सी सरदी भली लगे सबको
पसीने से राहत मिलती जो सबको

मीठी-सी ठिठुरन है आने वाली
पर नहीं किसी को यह सताने वाली
बिना शोर चुपके से यह आती
सभी के मनों को यह हर्षाती

तेज हवाएँ जब चले जोर से
तन को ढकना पड़े हर ओर से
अलाव पर सब हो जाएँ इकट्ठे
कहानी चुटकले हँसी के ठट्ठे

ग्रीष्म की उष्णता भगाती सरदी
तभी तो मन को भाती है सरदी
पर अपनों के बिना सरदी का मौसम
कितना भी हो सुहाना लगता वो कम

जाड़े का मजा कुछ ज्यादा आता
गर मैं खुद को परिवार में पाता
मन की बात आप सब के समक्ष धर दी
दोस्तों यही तो है अरब इमारात की सर्दी

-घनश्याम दास आहूजा

    

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter