ग्रीष्म ऋतु
की रही न चुभन
उमस रही न अब रही तपन
हल्की-सी सरदी भली लगे सबको
पसीने से राहत मिलती जो सबको
मीठी-सी
ठिठुरन है आने वाली
पर नहीं किसी को यह सताने वाली
बिना शोर चुपके से यह आती
सभी के मनों को यह हर्षाती
तेज हवाएँ
जब चले जोर से
तन को ढकना पड़े हर ओर से
अलाव पर सब हो जाएँ इकट्ठे
कहानी चुटकले हँसी के ठट्ठे
ग्रीष्म की
उष्णता भगाती सरदी
तभी तो मन को भाती है सरदी
पर अपनों के बिना सरदी का मौसम
कितना भी हो सुहाना लगता वो कम
जाड़े का
मजा कुछ ज्यादा आता
गर मैं खुद को परिवार में पाता
मन की बात आप सब के समक्ष धर दी
दोस्तों यही तो है अरब इमारात की सर्दी
-घनश्याम
दास आहूजा |