फिर शीत लहर उठी
है
दूर दूर तक बरफ गिरी है
चाँदी सी परतें
चमकती है पन्नियों सी
झर झर के बरसते हैं
कास कुसुम आकाश से
धुनी जाती रूई के से काहे
टूटती लड़ियों से बिखरते हैं
हर ओर दुग्ध झाग सा बगरा है
सामने की सड़क पूरी
ढँक गयी है बर्फ से
सब कुछ सुनसान है।
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मोड़ पर बर्फ से
ढँका घर
पहाड़ी बँगले सा ही दिखता है
जहाँ से सैलानियों के जोड़े
खिलौने से लगते थे
लगता है आज भी तुम
उस आदमकद खिड़की से सटी हुई
एकटक दूर तक फैली
सफेदी को निहारती होगीं
एकदम गुमसुम
अपने में ही खोयी सी।
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चटक चटक कर
लपटें
फायर प्लेस में ऊँची उठती है
काँच की चौखटी खिड़की पर मैं
सिर धरे सुकून से बैठा हूँ
बार बार वहम होता है
अचानक याद आ गई तुम्हें
अगर तन्द्रा भंग होने पर
तो ऐसे ही बिना ऊनी कपड़ों के
इस कड़ाके की ठंड में
पत्ते सी काँपती
आ खड़ी होगी द्वार पर।
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-डॉ राम
गुप्ता बैरिटन रोड आयलैण्ड
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