धूप के पाँव

 

धूप मजूरिन 

मलखान सिंह सिसौदिया  

 

सूरज उगते ही आ जाती
नित्य काम पर
धूप मजूरिन

पूरे दिन
खटती रहती है
तनिक विराम नहीं करती है
संझबेला होने पर थक कर
घर को जाती
धूप मजूरिन

हर छिन
कड़ी नजर के नीचे
बिन बोले ओंठों को भींचे
भू की ओर मुँह किये रहती
लगी काम काम में
धूप मजूरिन

नहा पसीने
से जाती है
तेज ताप में तप जाती है
पाँव झुलस जाते भूघर में
पर, श्रम करती
धूप मजूरिन

भूख प्यास
पूछता न स्वामी
बँधुआ जीवन कठिन गुलामी
ऊपर से मौसम की मारें
सब कुछ झेले
धूप मजूरिन

उर में आग
सुलगती रहती
उसके तन मन दहती रहती
जेठ क्वार में भड़क विप्लवी
ज्वाला बनती
धूप मजूरिन

- मलखान सिंह सिसौदिया

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