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प्रखर धूप में |
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छाँव रेशमी, शीतल आँचल, खोज
रहा आवारा मन
प्रखर धूप में पाँव जले हैं किन्तु नहीं है हारा मन
बंद पृष्ठ जब खुले नेह के
तृषा अधर की अकुलाई
लगी धूप में चंदन जैसी
अपनी जलती परछाई
सुधियों वाले पंख लगाए खिली राह में नागफनी,
सूखे हुए वृन्त पर गमका गुलमोहर अंगारा मन
हिय में कोई चुभे कटारी
जब जब आये याद सखे
सारी सारी रात न सोये
नींद करे फरियाद सखे
गर्म हवाओं का मौसम है ,ठहरा चरखा जीवन का,
निशा नटी से बातें करके किन्तु न थका हमारा मन
नीर भरी इक बदली आई
चली गई हिय को सहला
मौसम का उपहार दे गई
मुँदे नयन,उर- घट छ्लका
इस जीवन की कठिन डगर में जहाँ शूल,
सन्नाटे हैं
छुअन सुहानी अमलतास की शीतल नीर फुहारा मन
- प्रो
विश्वम्भर शुक्ल
१ मई २०२१ |
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