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        तेवर मौसम के

 

तेवर अपने लगा दिखाने
रह-रह कर मौसम
आग बबूला आँखें इसकी
चेहरे में दम खम

मुश्किल है अब घर से बाहर
जाना रिश्तों का
सन्नाटे से गहरा नाता
बहते रस्तों का
ऐसा लगता है जैसे दिन
मना रहा मातम

कांक्रीट के जंगल में
अब मंगल का होना ?
तपती गर्म हवाओं संग ज्यों
दंगल का होना
आशंकाओं की धरती पर
पैदा करे भरम

दुख के चेहरे की रंगत का
यों पल में उड़ना
सुख के चेहरे की लाली का
भी काला पड़ना
लुटे पिटे चेहरों में
कोई ज़्यादा कोई कम

- रवि खण्डेलवाल 
१ मई २०२१

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