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        गर्मी की दोपहर

 

गर्मी की दोपहर
सन्नाटा दौड़ा दर-दर

काली तपी सड़क पर
चल पड़ती कदम मिला
तीव्र ज्वर में भी लू
सहभागिनी बन कर

मुस्काये सूरजमुखी
बगिया में हो खड़ी
सजा रही रंगोली
पीत रंग भर-भर

गुड़हल धारे बैठा
लाल अंगारा फूल
सुलग रहे हैं अंग-अंग
झुका रहा है सर

लुटा दिया कनेर ने
खोल अपना खजाना
स्वर्ण घंटियाँ बिखर गयीं
धरती पर झर-झर

अमलतास, गुलमोहर
खड़े सड़क किनारे
हिल-हिल पुकार रहे
नित नवल रूप धर

दूर नहीं कर पाए
सड़कों का सूनापन
लू की ये अगन-तपन
बसा है दिलों में डर

- पूर्णिमा जोशी
१ मई २०२१

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