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        फिर से ये गर्मी

 

आई अब फिर से ये गर्मी
भूल गया सूरज
भी नर्मी

लू की लकुटी पकड़ करों में
हाँके सबको घर के अंदर
सर्दी में जो सबका संबल
वही डराए अब तो दिनकर
छाया भी मिलती है सहमी
राहें भी अब निर्जन सूनी
सड़कों पर लू
की हठधर्मी

तपती धरती, प्यासे पाखी
सभी चाहते शीतल साखी
बने छत्र सम पीपल नीम
अमलतास, गुलमोहर 'टीम'
श्रमिक पथिक को दें विश्राम
स्वागत करें अतिथि सम्मान
तरूवर बनते
श्रेष्ठ सुधर्मी

- ज्योतिर्मयी पंत
१ मई २०२१

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