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        एक पाती धूप की

 

एक पाती धूप की
आई है मेरे गाँव

वक़्त ने है बाँच डाली
चिट्ठियाँ सब दुख भरी
हाय बीमारी ये कैसी ?
जिस से सब दुनिया डरी
इतनी डालीं बेड़ियाँ
बेबस हुए हैं पाँव

ओढ़ कर पीली चुनरिया
लू मगन होने लगी
हाथ में मेंहदी रचाए
पी के घर जाने लगी
कूटनीतिज्ञ आँधियाँ
चलने लगी है दाँव

जंगलों में धूप ने
आतंक कैसा है किया
पूरा जंगल आग के फिर से
हवाले कर दिया
ढूँढती जंगल में गर्मी
ठंडी ठंडी छाँव

- आभा सक्सेना दूनवी
१ मई २०२१

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