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अभी कहाँ सावन की आहट
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दिन दिन गर्मी के तेवर हैं
कब ये गर्मी की रुत जाए
जब भी आए आग बरसाए
तन मन पिघला पिघला जाए
जेठ दुपहरी तपे अगन सी
सारी रैन अषाढ़ जगाए
बस बचपन ना जाने उसको
गर्मी, धूप, लाय क्यों भाए
पीठ अलाई गीले बिस्तर
रात गुनगुनी शोले दिन दिन
हाथ बीजना रात न छूटे
करवट बदलें पलकें छिन-छिन
एसी कूलर, फ्रिज सब घर में
आँख दिखाएँ सैन चढ़ाए
नींद कहाँ नैनों में आए
कोई मौसम नहीं सुहाए
जीवन का मधुमास है रूठा
कहाँ सुहाता कोकिल गाता
दूषित पवन धैर्य भड़काए
कहाँ नृत्य केकी का भाता
तांडव करता काल दीखता
मन का डर बढ़ता ही जाता
अभी कहाँ सावन की आहट
आकर ढाँढ़स कौन बँधाए
साँसों पर पहरे भी ऐसे
जाने कब पंछी उड़ जाए
सच तो यह है मौसम की भी
नहीं खबर कब आए जाए
मौन निकलते जाते, उत्सव
खुशियाँ शादी मास्क लगाए
दिल्ली तो है दूर अभी भी
बैठे पहरे कौन हटाए
- आकुल
१ मई २०२१ |
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