गर्मी का दौर
धूप में सुलगता
पाखी का ठौर
साँस भी लेना
गर्मी के शासन में
मुश्किल है ना
थम गयी है
हवा की धड़कन
बहुत गर्मी
उजड़ गयी
यह सुन्दर क्यारी
लू की है मारी
तीव्र आतप
फिर भी हरे - भरे
स्मृति-पादप
तपन में भी
मुस्कराते नीम ये
कितने हरे
कोशिश होगी
अमर बेल यह
सूख न पाये |
शीतल मही
धूप से नहाकर
तपने लगी
आम के पेड़
गर्मी आये - चिल्लाये
कैसे बौराये
सूखे हैं वृक्ष
सूख रही चेतना
जीवन बिना
उन्हें बचा लें
जिन पेड़ों की जड़ें
सूखने वालीं
बन्द हवाएँ
बीड़ी सी सुलगतीं
संवेदनाएँ
नयी पौध की
सूखती पल - पल
यह फसल
- मिथिलेश दीक्षित
१ मई २०२१ |