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मौसम है रूठा रूठा सा
(शंकर छंद)

 



मौसम है रुठा रुठा सा, है भयंकर ताप
आकर बादल फिर जाते हैं, सिर्फ दो पग नाप
सोच रही है धरती व्याकुल, कब बुझेगी प्यास
आँख मूँद ली है नदियों ने, त्याग जीवन आस

सावन सूखा देखा हमने, कुआँ सूखे ताल
खेतों में पसरा सन्नाटा, है हाल बेहाल
झूले पड़े नहीं दिखते हैं, न ही कजरी गान
बाग- बगीचे उजड़े-उजड़े, गया मुरझा धान

- चोवा राम वर्मा 'बादल'
१ मई २०२१

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