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बढ़ी तपिश |
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बढ़ी तपिश यूँ हो रहे,
सभी जीव बेचैन
ऐसे में हड़ताल पर, घर का टेबिल-फैन
घर के भीतर आग है, घर के बाहर आग
है ‘अंजुम’ चारों तरफ, यही आग का राग
गर्मी तानाशाह है, लू का गुण्डाराज
अब जाने कब गिर पड़े, अपने सिर पर गाज
पत्ता तक हिलता नहीं, पेड़ खड़े हैं मौन
समाधिस्थ हैं संत जी, इन्हें जगाये कौन
घुटी-घुटी-सी कोठरी, नहीं हवा का नाम
नई बहू का ‘जेठ’ ने, जीना किया हराम
इक कमरे में है भरा, घर-भर का सामान
उफ् गर्मी में आ गये, कुछ मूँजी मेहमान
बैरी है किस जन्म की, ये गर्मी विकराल
लो फिर लेकर आ गई, सूखा और अकाल
थकी-थकी-सी बावड़ी, सूखे-सूखे घाट
राम बुझाओ प्यास को, जोह रहे हैं बाट
ताल-नदी सबको लगा, अबके सूखा-रोग
दवा दीजिए वैद्यजी, परेशान हैं लोग
ऊपर मिट्टी के घड़े, नीचे तपती रेत
रामरती को ले चला, दूर प्यास का प्रेत
- अशोक
अंजुम
१ मई २०२१ |
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