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गर्म मौसम |
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ये अबके आतश गिरा रहा है
ये गर्म मौसम रूला रहा है
जो रिश्ता हूँ मैं, तो वक्त मुझको
बस आईना ही दिखा रहा है
ये धूप ग़म की, ये चिलचिलाहट
दुआ का पानी सुखा रहा है
वो ख़स के पर्दे, वो ठंडी शामें
मेरा ये कब था, तेरा रहा है
मुआफ़ करना, ये तल्ख़ लहजा
ग़ज़ल को बाग़ी बना रहा है
है मेरी मंशा कि लिक्खूँ सावन
मगर ये मौसम जला रहा है
वही जो पैसों का बाँध है ना,
नदी का पानी, सड़ा रहा है
अगर तू भूला हो तो बता दूँ,
अभी तलक तू ख़ुदा रहा है
तू यूँ बरस ए दुआ की बारिश
ये अश्क गिरकर बता रहा है
- सुवर्णा दीक्षित
१ मई २०२१ |
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