पसर गया सन्नाटा

 

 
सड़क- सड़क पर गली-गली में
पसर गया सन्नाटा है

अब अपनों को छूने में भी
लोगों को डर लगता है
मानव ही मानव को देखो
विषधर जैसा लगता है
मौत सरीखा
भय है कोई
जिसने सब को काटा है

दानवता का नशा चढ़ा था
अतः नाश तो होना था
कब तक बचता रहता इक दिन
मनुज भाग्य को सोना था
आज प्रकृति के
सूक्ष्म अंश ने
मारा इसको चाँटा है

निर्मल नदियाँ नीला अम्बर
और महकती पुरवाई
यानि प्रकृति की रंगत देखो
अब तो वापस है आई
स्वयं पूर्ति
कर लेती है ये
पूर्ण हुआ अब घाटा है

- सुमित सोनी
१ जून २०२०

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