अरे कोरोना तुझे नमस्ते

 

 
खेत पके होंगे गेहूँ के
चले गाँव हम
खटनी-कटनी-कटिया करने
अरे ! कोरोना ! तुझे नमस्ते

शहर बंद है बैठे-बैठे
तंग करेगी भूख-मजूरी
तंग करेंगे हाथ-पैर ये
सामाजिकता की वह दूरी
ठेला पड़ा रहेगा घर में
चले गाँव हम
आलू-मेथी-धनिया करने
अरे ! कोरोना ! तुझे नमस्ते

छुआ-छूत सड़कों तक उतरी
और चटखनी डरा रही है
मिलना-जुलना बंद हुआ है
गौरैया भी परा रही है
शंका में जब मानवता है
चले गाँव हम
छानी-छप्पर-नरिया करने
अरे ! कोरोना ! तुझे नमस्ते

मुँह पर मास्क लगा हर कोई
साँसों की चिंता करता है
स्वयं सुरक्षितता की खातिर
आचारिक हिंसा करता है
इन सामाजिक बदलावों से
चले गाँव हम
पटनी-पाटा-खटिया करने
अरे ! कोरोना ! तुझे नमस्ते

स्वाभिमान की हम खाते हैं
नहीं किसी की मदद चाहिए
एक माह का राशन-पानी
एक हजारी नगद चाहिए
हम अपने मन के मालिक हैं
चले गाँव हम
बुधई-बुधिया-हरिया करने
अरे ! कोरोना ! तुझे नमस्ते

- शिवानन्द सिंह 'सहयोगी
१ जून २०२०

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