जाहिल हवाएँ

 

 
किस कदर ढातीं कहर
जाहिल हवाएँ
दीर्घ होती जा रही हैं
लघुकथाएँ

एक संख्या अलसुबह की
और गाढ़ा भय
एक लम्बी राह
कितनी है अभी तक तय?
पाँव के संदर्भ
किसको क्या बताएँ

सिर्फ़ नंगा नाच
इक अश्लील जैसी जिद
बेशरम से दौर का
यह वक्त है शाहिद
थूकने को देवता
चेहरे सजाएँ

है पता स्विच ऑफ़
ग़ायब हैं कहीं पर बम
है लहरता लाल
हॉटस्पॉट का परचम
लॉकडाउन हैं
सभी संभावनाएँ

- रविशंकर मिश्र रवि
१ जून २०२०

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