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हर दिन वही
खबर |
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अखबारों से ऊब हो रही
हर दिन वही खबर है
छूत-छात वाले दिन
फिर से लौटे हैं
मिर्च मसाले काढ़े,
टोने, टोटके हैं
चौके में खल-कूट हो रही
विपदा बड़ी जबर है
ऊपर ही ऊपर
गणनाएँ बढ़ती हैं
औ' आँखें टीवी पर
हरदम रहती हैं
खाना पीना बंद बजार में
ऐसा घुला जहर है
नहीं किसी के
घर कोई भी जाता है
धर्म, उत्सवों से भी
टूटा नाता है
नहीं कोई संवाद सुहाता
ठहरा हुआ शहर है- पूर्णिमा वर्मन
१ जून २०२०
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