ये कोरोना

 

 
सूनी सड़क, गली चौराहे
सूना मन का कोना
घूम रहा विष भरे नाभि में
जब से ये कोरोना

बंद पड़े हैं मंदिर मस्जिद
गिरिजाघर, गुरूद्वारे
बंद हुये बाजार हाट सब
शोर शराबे सारे
ठहर गयी रफ्तार समय की
रुके ट्रेन के पहिये
सोये हैं फुटपाथों पर
सन्नाटे पैर पसारे
गुमसुम गुमसुम पेड़ देखते
करते कानाफूसी
समझ न पाते हुआ अचानक
कैसा जादू टोना ?

ये अदृश्य मायावी कोई
शक्ति दानवी लगती
या फिर रूठ गई मानव से
आज हमारी धरती
पल भर में हो गई शक्तियाँ
सारी धाराशायी
जग को मुट्ठी में करने का
दंभ रहीं जो भरती
नजर लग गई किसकी ये
जीवन की चहल पहल में
आओ खुशियों के माथे पर
रख दें एक दिठौना

पर मानव की शक्ति अमर है,
नहीं कभी झुकती है
जीवन की ये धारा अविरल
कभी नहीं रुकती है
गहरा हो अँधियारा कितना ,
या हो तेज हवाएँ
मन में जलती लौ आशा की
कभी नहीं बुझती है
संघर्षो की तेज आँच में
जो तपकर निखरा है
वही चमकता है दुनियाँ में
बनकर असली सोना

कठिन समय है, सूझ-बूझ से
हमको चलना होगा
अग्नि परीक्षाओं में
नंगे पाँव गुजरना होगा
अगर चाहते हो, करना
सब विफल शत्रु की चालें
तो लक्ष्मण रेखाओं के
भीतर ही रहना होगा
मुश्किल घड़ियों में संयम ही
सबसे बड़ा कवच है
अफवाहों के बहकावों में
तनिक न धीरज खोना

- मधु शुक्ला
१ जून २०२०

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