लंबा दुख

 

 
कोरोना है बाहर भीतर -
भूख-प्यास है ग़म भी हैं
रामभरोसे तुम भी भैया
रामभरोसे हम भी हैं

रोज़ी रोटी छिनी छिन गईं
जीवन की सब आशाएँ
खाली हाथों में चुभती हैं
चिन्ताओं की रेखाएँ
बंद रहें आदेश हुआ है
सब अपने अपने घर में-
जिनका घर ही नहीं कहीं वे
आखिर किस दर पर जाएँ
बंदर के हाथों मशाल है
तूफानों के क्रम भी हैं
रामभरोसे तुम भी भैया
रामभरोसे हम भी हैं

हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
कोरोना को कहाँ पता
खड़ी हुई है एक घाट पर
आज समूची मानवता
बस्ती-बस्ती पसरी दहशत
द्वारे-द्वारे मौत खड़ी-
ढूँढ रही है मगर सियासत
उसमें भी अपना रस्ता
मोहन भी हैं यहीं यहीं
डेविड भी हैं अकरम भी हैं
रामभरोसे तुम भी भैया
रामभरोसे हम भी हैं

खड़े हुए हर ओर अभावों के
अवसादों के साये
जाना है किस ओर कहाँ कब
कौन किसे अब बतलाए
एक अनार लिए चारागर
सौ बीमारों के आगे-
ढोंग और पाखंड दिखाकर
हमको नित नित भरमाए
रोज नए फ़रमान तुग़लकी
और हवाई बम भी हैं
रामभरोसे तुम भी भैया
रामभरोसे हम भी हैं

चलो करें संकल्प परस्पर
दुःख सुख मिलकर बाँटेंगे
हर मुश्किल को काटा है
तो ये मुश्किल भी काटेंगे
लड़ते हैं इस महाशत्रु से
मिलजुल कर यह जंग अभी-
बची ज़िन्दगी तो आगे फिर
दुश्मन दोस्त बना लेंगे
जीवन के दोनों रंग हममें
खुशियाँ हैं मातम भी हैं
रामभरोसे तुम भी भैया
रामभरोसे हम भी हैं

- जय चक्रवर्ती 
१ जून २०२०

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