सूनापन है भीतर

 

 
साजिश भगदड़
भय, आतुरता
होना घर से बेघर

एक वायरस भ्रम का
दूजा कोरोना का फैला
भीड़ सड़क पर जमा हो गई
लिए दुखों का थैला

कभी कभी सुख बन जाता है
दुख ही दुख से कटकर

जीने की चाहत ने
जीवन को खतरे में डाला
अब यह बहस हुई बेमानी
क्या सफेद क्या काला

बाहर भारी शोर-शराबा
सूनापन है भीतर

- गणेश गम्भीर
१ जून २०२१
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