१-
मानव के ही माप हैं, निर्धन, धनी, फकीर
कभी न खींचे वाइरस, राजा-प्रजा लकीर
राजा-प्रजा लकीर, बिना यह धावा बोले
अपनों से कर दूर, मृत्यु की कुंडी खोले
रहता यह हर स्थान, नहीं पर दिखता दानव
'कोरोना' से रोज, लड़ रहा हर इक मानव
२-
वैश्विक जीवन आपदा, महासमर कर्तव्य
सब समिधाएँ सोचतीं, आहुति का हों द्रव्य
आहुति का हों द्रव्य, समर्पण कर दें इतना
बनें नींव की ईंट, न मन कंगूरों जितना
उनका है उपकार, धन्यवादी है हर-मन
संकट में जो वीर, सँभालें वैश्विक जीवन
३-
खिड़की से ही चाँद ने, किया ईद संवाद
गले मिलेंगे प्रिय मगर, 'कोरोना' के बाद
कोरोना के बाद, दूरियाँ कुछ कम होंगी
लोटेगा विश्वास, कि नजरें भी नम होंगी
कहते हैं सब लोग, काल की है बस झिड़की
यह 'कोविड' उन्नीस, शीघ्र ढूँढेगा खिड़की
- परमजीत कौर रीत
१ जून २०२१