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कोरोना की गहरी पीर |
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कठिन हो गया जीवन जीना,
कोरोना की गहरी पीर
आपस की दूरियाँ बढ़ाकर, खींच गया है एक लकीर
अब कोई क्यों गले लगेगा, हाथ मिलाने से कतराय
अपनों ने कर लिया किनारा, बदल गई कैसी तस्वीर
आई कुछ ऐसी मजबूरी, मचा हुआ है हाहाकार
मुँह को बाँधे हुए लोग अब, ढूँढ रहे कोई तदबीर
थोड़ी रखो सावधानी जी, घर के रखो किवाड़े बंद
मेले-ठेले, भीड़-भाड़ से रखो बचाकर अलग शरीर
भयाक्रांत होने की कोई, ऐसी नहीं कहीं कुछ बात
तात, भ्रात सब निश्चय कर लें, तोड़ेंगे मिलकर जंजीर
- प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
१ जून २०२१
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