चीन से इक यम

 

 
चीन से इक यम रवाना हो गया
साँस ही जिसका ठिकाना हो गया

रोग कोरोना यों फैला देश में
हर बशर इसका निशाना हो गया

फैलती जाए वबा ये छूत की
दिन ब दिन रोगी जमाना हो गया

साँस घुटती जाए है आए न दम
रोग ये तो कातिलाना हो गया।

डर रहा नज़दीकियों से आदमी
दूरियों से दोस्ताना हो गया।

शक के घेरे में है हर इक नागरिक
हर किसी को आजमाना हो गया

शाह का ऐलान है घर में रहो
बंद अब मिलना मिलाना हो गया

लॉक डाउन से हुआ जब काम ठप्प
हाय! मुश्किल घर चलाना हो गया

क़ैद चौदह दिन से हैं तन्हाई में
घर भी जैसे जेलखाना हो गया

जो यगानों के बिना रहता न था
इस वबा से वो यगाना हो गया

मोर, चीते घूमते हैं शहर में
आदमी को कैदखाना हो गया

नर्स डाक्टर सब जुटे हैं रात-दिन
काम कोरोना भगाना हो गया

दीप 'मीरा' एकता का जब जला
रोग तब ये गायबाना हो गया

- मनजीत शर्मा 'मीरा' 
१ जून २०२१

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter