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कहाँ गये वो पहले जैसे

 
बटुए भूँखे, तड़प रहे हैं
लाचारी हर दिन
कहाँ गये वो पहले जैसे,
उत्सव वाले दिन

त्योहारों मे धमाचौकड़ी
रंग बिरंगे कपड़े लत्ते
जैसे पेड़ों पर उग जाएँ
पंखों वाले ताजे पत्ते

देख अभावों में, पर्वों को
चुभती मन मे पिन

गेहूँ की बाली है सूखी
फिर बादरा है छाया
धरती ने लौटाई ख़ुशियाँ
घर मे राशन आया

रंगों के छीटों संग आए,
बौछारों के दिन

सौंप गई बासंती, भवरों
को खेती के गाने
हुआ नया आरम्भ, सृजन का
अब जाने अनजाने

कटहल, महुआ, आम, बाँटता
चैती का हर दिन

- उमेश मौर्य
१ अप्रैल २०२१

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