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        चैत का मौसम

 
चैत का मौसम सुहाना आ गया
शुभम का संकेत हर दिक छा गया

मृत्यु का था घोर नर्तन हर तरफ
लोग गाजर मूलियों सम कट रहे
त्राहि त्राहि थी मची, हर घाट पर
घाट सारे अर्थियों से पट रहे
माँ हैं आयीं साथ लायीं आस है
छोर पल्ले का कवच बन छा गया

यों लगा जैसे मिटा है घोर तम
मुस्कुरा कर सूर्य निकला ओट से
जीव की जो था जुगाली कर रहा
है तड़पता वह सज़ा की चोट से
आओ उसकी मौत का उत्सव करें
देख संवत्सर खुशी बन छा गया

है सदा तेरी कृपा हम पर बनी
जब कभी विपदाओं ने घेरा हमें
ढाल तू, तलवार भी तो तू बनी
जब कभी खतरों ने है टेरा हमें
चैत की नव भोर को नूतन नमन
नया संवत्सर कृपा बन छा गया

- सरस दरबारी
१ अप्रैल २०२१

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