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       उत्सव जीवी संस्कार

 
उत्सवजीवी संस्कार के
हम पल-पल पोसे हैं

गये चैतुये दूर देश को
भर अनाज घर लाएँगे
फिर चौमासे भर जन-बच्चे
जी भरकर खाएँगे
श्रम सीकर के मोरपंखिया
ये सिर पर खोंसे हैं

नये साल का स्वागत करते
खेत सुनहरी बालों के
ओला पड़े न बादल आयें
गट्ठर ढेर सवालों के
अपनी हमने जी भर करली
अब सब रामभरोसे हैं

खलिहानों से चौपालों तक
हवा नाचती फिरती
गाँव-शहर, गलियों, चौराहों
सुबह सुख भरी सुरती
अपने यहाँ दुक्ख के प्रकटन
उत्सवमयी पलों से हैं

- राजा अवस्थी
१ अप्रैल २०२१

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