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        नवल वर्ष का चैत मास

 
नवल वर्ष का चैत मास फिर से मुस्काया है
रंग बिरंगा मौसम संग
अपने ले आया है

मंद-मंद मादक पुरवाई अविरल बहती है
धरती के हर अंग-अंग को पुलकित करती है
सूरज ने भी चढ़कर नभ में
उसे सजाया है

रंगों की रंगत जन-जीवन में फिर छायी है
पुष्प खिलें वन-उपवन धरती फिर मुसकायी है
खत्म हुई शीतलता मौसम
भी गरमाया है

फुदक-फुदक डालों पर कोयल फाग सुनाती है
चहक-चहक बागों में बुलबुल चैती गाती है
इन रागों ने मौस को फिर
से हुलसाया है

- दिनेश यादव
१ अप्रैल २०२१

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