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उत्सवों का राग

 
चैत लाया साथ अपने
उत्सवों का राग

कल हरी थीं आज फसलें
वे गई हैं पक
वर्ष नूतन आ गया ले
अन्न की रौनक
खेत का सोना बखारी
में रहे हैं भर
खिल गई मुस्कान दाने
चार आए घर

बोलते मुंडेर पर अब
क्यों खलेंगे काग

नर्म नाजुक आ रहीं हैं
शाख पर कोंपल
खोल मुट्ठी धूप भू पर
चैत ने दी मल
आम संग गदराए हैं
इमलियाँ कमरख
चल रही है गर्म होकर
है हवा शिख नख

लग गई हो हर तरफ जैसे
धरा पर आग

कंजको के रोचना
माथे सजे नौ दिन
कम चुभेंगे नौ दिवस अब
दुरभिसन्धि पिन
दुधमुँही इन देवियों का
नित्य कर अर्चन
नौबतें बजने लगीं माँ की
हँसे जन -जन

भोग से अठवारियों के ,
कुछ जगेंगे भाग

- अनामिका सिंह
१ अप्रैल २०२१

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