प्याली चाय की        

 
एक प्याली चाय की हो
साथ मे हो तुम
और बस क्या चाहिए

बतकही हो
खिलखिलाहट हो
ठहाके हों
मेघ आषाढ़ी झरें
झोंके हवा के हों
चाय की मधु चुस्कियाँ हों
वक्त जाए थम
और बस क्या चाहिए

पोटली खोलें
किसी भूली कहानी की
श्वांस में
फिर से महक हो
रातरानी की
धुन कोई भूली हुई सी
गुनगुनाएँ हम
और बस क्या चाहिए

सुघड़ हाथों से बनी
मोहक महक वाली
जिंदगी हो ज्यों
सुबह की
चाय की प्याली
नित नए मैं गीत गाऊँ
मुस्कराओ तुम
और बस क्या चाहिए

- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
१ जुलाई २०२०

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