चाय चढ़ा     
 

 
घटा घनेरी घिर घिर आई
मुझे न ठंडी धूप सुहाई
नरम गरम दोहर ओढ़ा
अरी बहुरिया! चाय चढ़ा

घिस लेना अदरक की फाँकें
दो -दो लोंग इलाची
सूंघ मसाले आ बैठेगी
मुँहबोली वह चाची
पीढ़ी खटिया पास बढ़ा
सौंफ मुलेठी चाय चढ़ा

चाय पकोड़ी का तू जाने
सखी सहेली नाता
चटनी हरे पुदीने वाली
धनिया सब को भाता
देवर तेरा नाक चढ़ा
घने दूध की चाय चढ़ा

सारा दिन तू खटती फिरती
कुछ अपने मन की कर
सब की रीझें पूरी करती
है तुझको किसका डर

मन की पोथी खोल पढ़ा
शक्कर वाली चाय चढ़ा

- शशि पाधा
१ जुलाई २०२०

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