आओ मित्र चाय पी लें

 

 
कितनी सुहानी आज की ये शाम है
ग़म का भला अब यहाँ क्या काम है
कुछ देर तो जी भर के हम भी जी लें
आओ मित्रों चाय पी लें

अख़बार भी बासी सा जैसे हो गया
दुनिया का रोना बस करोना हो गया
चौकड़ी भरता हुआ ये पल मगर
जंगली हिरणी का छौना हो गया

किस बोरियत में आज का ये दिन ढला
ऊबा हुआ सा बादलों का दल चला

हों जाए हम भी ज़रा बारिश में गीले
आओ मित्रों चाय पी लें

गोठिल हुए सम्बंध रिश्तेदारियाँ
हर साँस पर अपनो की मनसबदारियाँ
प्रेम झूठा बन गया नफ़रतों के दौर में
भेड़िए के जिस्म पर शेर जैसी धारियाँ

इस कपट के काल पर हम क्या लिखें
यह उचित है हम जो हैं वैसे दिखें

पारदर्शी झील है या रेत के टीलें
आओ मित्रों चाय पी लें

वो यादों की पुरानी सीली सी गली
महुआ सी पीली आँगने में है खिली
तनज़ेब का कुर्ता दुप्पटा जार्जेट का
रुमाल पर काढ़ी थी जूही की कली

थी शिकायत की ठिनकती पोटली
गुलमोहर की मंजरी झरती चली

घूमतीं अब भी वही चलचित्र की रीलें
आओ मित्रों चाय पी लें

- रंजना गुप्ता
१ जुलाई २०२०

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