संग चाय के

 
संग चाय के करे जुगाली
बैठा राम अधीर!

घूँट-घूँट को सुड़क-सुड़क कर
ले लेकर चटकारे
करे तफ्सरा भ्रष्ट-तंत्र पर
अपने दीदे फारे
पृष्ठभूमि में सिसक रही है
बापू की तस्वीर!

वहाँ महल में झगड़ रही हैं
काजू भरी प्लेटें
जहाँ तीसरे दिन राजाजी
ताश सियासी फेंटें
जूतों में ही बाँट रहे हैं
बस अपनों को खीर!

जनता हित हाँ जनता हित में
दुबले हुए बिचारे
भूख मिटाने रोज परोसें
मीठे-मीठे नारे
लोकतंत्र में भला लोक की
कब बदले तकदीर!

सेटेलाइट ने भेजीं
विचलित करतीं तस्वीरें
विफल हो रहीं एक-एक कर
सरहद पर तदवीरें
काशी वासी संशय में
क्या बूढ़ा हुआ कबीर!

- डा रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१ जुलाई २०२०

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