आषाढ़ का इतवार        

 
भीग कर आषाढ़ में जाने को है इतवार
आओ चाय पी लें

फुलझड़ी के साथ
आया था मुआ यह
रही थोड़ी देर फिर वह फुर हुई
और फिर गीला रहा सारा दिवस यह
ख्वाब इसने देख डाले फिर कई

वह न आई और यह करता रहा मनुहार
आओ चाय पी लें

बंद कमरे हैं
भयानक शोर बाहर घूमता है
लोग सारे डर गए
चाय की चुस्की लगे फ़ीकी
गहन अवसाद से दिल भर गए

कोई कह दे उठो यह सपना था यार
आओ चाय पी लें

- प्रदीप कुमार शुक्ल
१ जुलाई २०२०

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