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चाय पिएँ
अखबार न चाटें |
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सुबह-सबेरे, मिलजुल बैठें
चाय पिएँ अख़बार न चाटें
वही पुराना रोना-धोना
करे चाय को और कसैला
सींग उठाए डोल रहा है
बुरी ख़बर का साँड़ बनैला
क्यों चपेट में इसकी आना
कुछ सुख-दुख के पल तो बाँटें
चाय अकेली संग-सहेली
बिस्कुट या नमकीन, पकौड़ी
आया सूरज इसे सुड़कने
कर-कर अपनी छाती चौड़ी
बालकनी के झूले में धँस
कुछ तरकारी-भाजी छाँटें
ख़बरों में बोलो, क्या रस है
सिर्फ आँकड़ों की लफ्फाजी
बहस रहे अम्मी से अब क्यों
सुबह-सुबह बोलो, अब्बाजी
चाय गरम हो धूप गुनगुनी
क्यों नाहक़ बच्चों को डाँटें
दूध सुबह का आया ताज़ा
कल वाले की चाय बनी है
बेख्याली में कुछ पत्ती भी
अब प्याली में आन छनी है
मूड मगर रखिए कुछ हल्का
बहसों में ही वक़्त न काटें
- पंकज परिमल
१ जुलाई २०२०
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