दो दृश्य           

 
एक चाय की प्याली से ही
सारा जग हर्षाया रहता
कोई मौसम हो पर हर दम बस अषाढ़ ही छाया रहता.

एक दृश्य तो यह है प्रियवर
बेड टी लेकर किसी सुबह जब श्रीमती बिस्तर तक आतीं
अपने मादक रूप गंध से अंतर्मन सुरभित कर जातीं

ऑफिस भर यों ही लगता है जैसे वह सँग में बैठी हों
ध्वनि प्रतिध्वनि सब मीठी लगती चाहे वह कितनी ऐंठी हों

लेकिन घर आते ही तेवर "क्यों इतनी मुस्कान खिली है"
लूज़ हो गया कांफिडेंस सब चाय शाम की नहीं मिली है

एक चाय की प्याली से ही
घर आँगन गरमाया रहता
कोई मौसम हो पर हर दम बस अषाढ़ ही छाया रहता

एक दृश्य कुछ ऐसा भी है
सुनो! बॉस को मैंने घर पर शाम चाय पर बुलवाया है
चाय तुम्हारे हाथों वाली फिर पीने का मन आया है

कोरोना है बाहर का तो कुछ पीना न खाना होगा
बस घर पर ही कुछ पकौड़ियाँ औऱ समोसे तलना होगा

बेसन के लड्डू तो हैं ही चूरे की नमकीन वही सब
और दार्जीलिंग वाली चाय आखिर काम आयेगी फिर कब

सुन कर मेरा इतना कहना पटक दिया मोबाइल नीचे
तीन मास से घर मे खटना कान बन्द कर आँखें मीचे

एक चाय की प्याली से ही
जीवन स्वर गुर्राया रहता
कोई मौसम हो पर हर दम बस अषाढ़ ही छाया रहता

- निर्मल शुक्ल
१ जुलाई २०२०

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