चाय तो बहाना है 

 
रिश्तों के बीच बुना
इक ताना बाना है
संग बैठ तुमसे बस
हँसना बतियाना है
चाय तो बहाना है

आ जाना यादों की
गिरहें फिर खोलेंगे
फीके इन लम्हों में
कुछ मिठास घोलेंगे
भर लेंगे रंग कई
साँझ के पियालों में
कलियाँ कुछ खुशबू की
साँसों में बो लेंगे
सोये इन सपनों को
नींद से जगाना है
राग नया गाना है

सिलसिले चलायेंगे
मेल -मुलाकातों के
दोहरायेंगे किस्से
पिछली बरसातों के
अन्तहीन चर्चे कुछ
मन के कुछ मौसम के
सौ -सौ मतलब होंगे
बेमतलब बातों के
रखना है याद किसे
किसे भूल जाना है
मन को समझाना है

चुस्की के साथ -साथ
आँखों में झाँकेंगे
चेहरे के मौसम का
तापमान नापेंगे
भाप की लकीरों में
बनती तहरीरों के
मिलकर हम अनबूझे
शब्द- शब्द बाचेंगे
आँख बचा दुनिया से
चार पल चुराना है
और गुजर जाना है
चाय तो बहाना है

- मधु शुक्ला
१ जुलाई २०२०

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