चाय की मुलाकातें

 
एक कप चाय की मुलाकातें
हो गयीं यार!
सब गयीं बातें

वो चुहलबाजियाँ - शरारत की
वो ठहाकों की गूँजती मस्ती
जाने कहाँ खो गयी -
फिजायें वो
देख वीरान हो गयी बस्ती

बन्द दरवाजे कुछ खिड़कियाँ है -
दिन इन्हें देखते गुजर जाते

यों है मौसम - बहार से भीगा
मन में उजड़ा हुआ सा पतझर है
कोई अपना नजर -
नहीं आता
सबमें बैठा हुआ कोई डर है

घर के कैदी हैं कुछ पता ही नहीं -
दिन का आना या कब गयीं रातें

- कृष्ण भारतीय
१ जुलाई २०२०

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