पहाड़ों की सर्दी में
ऊँचे बादलों के घर थे जहाँ
दिन आज वो, याद आ रहे हैँ
जज्बातों को रोका तो बहुत है
कहे लव्ज, लौट लौट आ रहे हैं
चलो आज चाय पर फिर
कुछ रूहानी हुआ जाय
आओ बैठो,
चाय पर कुछ इबादत की बात करें
चलो चाय पर बैठें
वक्त से वक्त की बात करें
वो जो बदल रही दुनिया पल पल
उस पल की उठा पटक की बात करें
कुछ बिसरे से शेर तुम कहना कुछ सुनना
आओ बैठों, नए अशरार की बात करें
एक ख्वाहिश थी, दिल में छिपी
गर पूरी हो जाए
बादल घिरे हो, सर्दी का मौसम हो
इधर उधर पानी भरा हो
दूर तक धुँधला सा हो आलम
चाय हो, धुआँ धुआँ हो
कुछ उलझे सुलझे से जज़्बात हों
कुछ नम होती आँखें हों
फिर एक और चाय का तजुर्बा करें
आओ बैठो
जो भूली गज़ल नहीं लिख पाए
उस गज़ल की शुरुवात करें