|
चाय बिखेरे
नूर |
|
|
रचा पकौड़े चाय ने, दुनिया में इतिहास
घर-घर में इनसे खिले, मेहमानों का वास
जीवन की ये जरूरत, तन-मन की ये जान
हर कोई पीता इसे, बालक-वृद्ध-जवान
सरदी में इसकी सदा, होती जय जयकार
ठंडी ठिठुरन टाल के, देती लाभ हजार
चयापचय की दर बढ़ा, करे रोग ये दूर
वसा करे कम देह की, चाय बिखेरे नूर
गोद असम की है मिली, मिला जगत का प्यार
धर्म भेद को छोड़ कर, चाय बनी गलहार
दिल जीते है अतिथि का, महिमा अपरंपार
स्टेशन, दूकान, मॉल में, दिखती चाय बहार
- डॉ मंजु गुप्ता
१ जुलाई २०२०
|
|
|
|