ऐसी बसी है चाय    

 
दिल में कुछ ऐसी बसी है चाय
लग रहा है जिन्दगी है चाय

लोग कहते हैं जरा रुकिये
जाइये मत बन रही है चाय

दूथ अच्छा ही नहीं लगता
इस कदर अब मुँह लगी है चाय

घर बुलाकर किस अदा के साथ
प्यार से उसने पिलाई चाय

लोग हो जाते हैं तब बेचैन
देर से मिलती है जब भी चाय

नाज नखरे हैं बहुत उसके
सर पे चढ़कर बोलती है चाय

दौर फुल कप का हुआ गायब
हाफ कट में मिल रही है चाय

वो बहुत ही भाग्यशाली है
वक्त पर जिसको मिली है चाय

- राम अवध विश्वकर्मा
१ जुलाई २०२०

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