बने बात चाय पर    

 
घर की हो घर से एक मुलाकात चाय पर
आये यों कोई शाम बने बात चाय पर

मसलों का हल या कर सकें बातें जहान की
मिलते हैं कम ही ऐसे तो लम्हात चाय पर

बजते हैं घुँघरू जब भी याँ पुरवा के पाँव में
गाती है गीत यादों की बारात चाय पर

थोड़ी शरारतों या कि नाराज़गी में दोस्त
कितने ही रंग बदलते थे जज़्बात चाय पर

आकर वबा ने इनको भी सबसे जुदा किया
तन्हां से हो गये हैं अब दिन-रात चाय पर

इक रोज़ मिलके बैठे जो आँसू खुशी तो 'रीत'
होंगे कई जवाब-सवालात चाय पर

- परमजीत कौर 'रीत'
१ जुलाई २०२०

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