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भुट्टा |
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तन हरा मन भरा दाँत मोती
लसे
मूँछ के ताव का कोई सानी नहीं
पर्त पर पर्त छिलकों से झाँपा हुआ
अनछुआ सा बदन सिर्फ भाँपा हुआ
जन्म से माँ कमर पर बिठाये हुए
तेल उबटन किये खुब सजाये हुए
बीस दिन में जवानी चढ़ी झूमकर
लाल धरती का मैं आसमानी नहीं
स्वाद में गंध में सोंधपन बस गया
जब तपा आग में यश मिला रस गया
मसखरी, कहकहे, खूब ठठ्ठे हुए
एक दाना लड़ा पस्त पट्ठे हुए
मिर्च, धनिया व लहसुन की चटनी पिसी
लेप अंतिम बनी, ये कहानी नहीं
देह का दान कर वह घमंडी हुआ
इसलिए दस मिनट बाद डंडी हुआ
धर्म को छोड़ जो अर्थ पर आ गया
खेत, बाजार में भाव कुछ पा गया
छोड़कर रीतियाँ नीतियाँ बाप की
वर्ण-संकर हुआ, खानदानी नहीं
- उमा प्रसाद लोधी
१ सितंबर २०२० |
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