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हमने खाए जीभर भुट्टे






 
हमने खाये जी भर भुट्टे
पाकर साथ तुम्हारा

पहली बारिश मधुर मास की
दोनो उस दिन लेट,
तुम भी भीगी, हम भी भीगे
कॉलेज का वह गेट,
और पास में जलती सिगड़ी
मौसम था क्या न्यारा

आप-आप से तुम-तुम होकर
थोड़ा आये पास,
हीगल-कान्ट, सिकन्दर-पोरस
दर्शन से इतिहास,
कौतुक करतीं बातें सारी
झूमे आलम सारा

अदला-बदली हुई फ़ोन की
पड़ी घड़ी पर दृष्टि,
उधर क्लास थी ओपी सर की
इधर शुरू थी वृष्टि,
थोड़ी देर और रुक जाओ
जैसे हुआ इशारा

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'
१ सितंबर २०२०

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