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भुट्टा
बदले रूप
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भट्टी के सैलून में, भुट्टा
बदले रूप
काला तिल हर गाल पर, आत्ममुग्ध अनुरुप
आग हवा के बीच में, भुट्टा करता खेल
जलकर नींबू नमक संग, करे परस्पर मेल
भुट्टे का रण दाँत से, उधड़े मोती वस्त्र
इधर- उधर थककर गिरा, पड़ा हुआ निर्वस्त्र
दहके तन पर कोयला, पंखा झले समीर
भुट्टे की जीवन व्यथा, सबकी अपनी पीर
ऐसी गुजरी जिंदगी, नहीं स्वयं पर जोर
भुट्टा फुदके आँच में, नाचे चारों ओर
बूझो-
सौ पत्तों के बीच में, छुपा मोतियन हार
बेचन आयी हाट में, इक सुंदर-सी नार
- त्रिलोचना कौर
१ सितंबर २०२० |
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